डाॅ0 हरिनारायण जाेशी " अंजान"
सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का आदि स्राेत है उत्तराखण्ड। जैसे गंगा गाैमुख से और यमुनाेत्री से जमुना निकलकर गंगा सागर तक सिंचित और पवित्र करती हुई जाती हैं। वैसे ही पहाड़ की गिरी- कंदराओं से निकले बालक भारत की मजबूत सैन्य क्षमता बन जाते हैं। सीमा रक्षा में प्रखर नाैजवानाें की शहादतें पहाड़ जैसे गाैरव की परम्परा बन गई। भारत माता की आजादी के लिए नेताजी द्वारा गठित आजाद हिन्द फाैज में लगभग 25 प्रतिशत से अधिक उत्तराखण्ड के वीर सैनिक थे। नेताजी के अंगरक्षक, विश्वास पात्र, सहायक आदि विशिष्ट पदाें पर उत्तराखण्ड के सैनिक रह चुके हैं। गढ़वाल राईफल्स , कुमायूँ रेजीमेंट ने अपनी वीरताओं के इतिहास रचे। विक्टाेरिया क्रास प्राप्त कर भी यहां के वीर-बहादुर सैनिक सम्मान पा चुके हैं। उत्तराखण्ड सही अर्थाें में सैनिक धाम है।
आज भी भीतरी और बाहरी बड़ी सुरक्षा की जिम्मेदारी उत्तराखण्ड के वीर सपूताें के कंधाे पर हाेती है। राज्य के डेढ़ कराेड़ से अधिक हम नागरिकों का कर्तव्य भी है कि हम नैतिकता में, चारित्रिकता में, कर्तव्य निष्ठता में अपने काे श्रेष्ठ रूप से आगे रखें। अपने देश और राज्य पर गर्व करें तथा गर्व का संयाेजन बने। जै भारत, जै उत्तराखण्ड ।