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देहरादून के अभिनव ने पर्यावरण के लिए की कश्मीर से कन्याकुमारी ‘साइकिल यात्रा’

सूर्यकांत सिंह बेलवाल ‘अविरल’



‘‘जब हो जुनून तो हर रास्ता आसान लगता है, जीत को हो गुमान तो क्या डर लगता है’’ कुछ ऐसा ही जज्बा था जब देहरादून के निवासी युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि अभिनव सिंह कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपनी साइकिल यात्रा पर निकले थे। 4000 किलोमीटर की लम्बी उनकी यह यात्रा इतनी आसान नहीं थी जितना आसान सुनने में लगता है, परंतु जब आप समाज को कुछ देने की ठान लेते हैं तो कोई बुरी ताकत आपके बड़े जज्बे को कम नहीं कर सकती। इस लम्बी यात्रा में अभिनव को भी कुछ असामाजिक तत्वों ने थामने की कोशिश, पर राही को रूकना कहां था! पुलिस का दूर तक नामों निशां नहीं पर अपने हौंसले के बल पर निडर इस साहसी ने अपनी यात्रा दो चरणों में पूरी की। क्योंकि अभिनव को 1 मार्च 2020 को कश्मीर से कन्याकुमारी के लिए यात्रा शुरू करने के बाद 22 मार्च में लॉक डाउन लगने के कारण हैदराबाद से 22 मार्च को ही फ्लाइट से देहरादून अपने घर लौटना पड़ा। हां हताशा जरूर रही होगी पर शायद निराशा का कहीं आलम नहीं था। यात्रा अभी बाकी थी और हौसला भी। 

खेल प्रेमी व पर्यावरण यात्री फौजी इंद्राज सिंह व माता अर्चना तोमर के सुपुत्र अभिनव सिंह ने पूरे देश व विश्व को पर्यावरण जागरूकता का संदेश देने के लिए शेष बचे 1400 किलोमीटर पूरे करने के लिए पुन: फ्लाइट ली और हैदराबाद पंहुच कर 1 दिसम्बर 2020 को अपनी साइकिल यात्रा आरंभ की। वह अपनी पूरी यात्रा में मध्यप्रदेश के बीहड़ इलाकों से गुजरे, नितांत अकेले, असामाजिक तत्वों से भी पाला पड़ा परंतु उनकी समझदार और साहस उन्हें उनके पथ पर ले जाता रहा और ऐसे तत्वों को नीचा दिखाता रहा। अपनी साइकिल यात्रा में वे पंजाब से भी गुजरे।  अपने अनुभव के आधार पर अभिनव सिंह ने बताया कि कई स्थानों पर तो पुलिस व्यवस्था चाक चौबंद है परंतु कई प्रदेश ऐसे हैं जिनके कई इलाकों में, रास्तों में उन्हें पुलिस का कोई नामो निशां नहीं मिला। ऐसे सुनसान इलाके कई बार भयभीत कर देते थे तो कई बार रोमांचित। 

पंजाब, बैंगलोर आदि कई इलाकों में वहां के निवासियों ने उनकी इस पर्यावरण यात्रा के प्रति अपार स्नेह दिखाया, फोटो आदि खिंचवाए व अपने यहां रात्रि रूकने की व्यवस्था की,  तमिलनाडु जैसे कई इलाकों में हिन्दी भाषी होने के कारण उन्हें कुछ निराश होना पड़ा। परंतु यात्रा फिलहाल अविरल थी, यात्री निरंतर चलता गया, तमाम झंझावतों को दर किनारे करते हुए। उन्हें कभी लोगों ने अपना आशियाना मुहैया कराया तो कभी उनका अपना टेंट काम आया।



यात्रा में साइकिल आदि सभी खर्च मिलाकर उनके कुल लगभग 60,000रु. खर्च हुए। 

और यह कठिन व अति रोमांचकारी यात्रा अंतत: 9 दिसम्बर 2020 को समाप्त हुई या यूं कहें पूरी हुई, कन्या कुमारी विशाखापट्टनम के स्वामी विवेकानंद नंद मेमोरियल पर जाकर। यहां उनके साथ कई लोगों ने उनकी इस अदम्य साहसी पर्यावरण यात्रा करने पर उन्हें बहुत शुभकामनाएं दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।

फिलहाल अभिनव टूरिज्म से जड़े पाठ्यक्रम में मास्टर्स  कर चुके  हैं, भविष्य में उनका इरादा इसी में पीएचडी करने का हैं । उनका अधिकांश परिवार अध्यापन से जुड़ा है और वे भी सामाज में समाजोपरक शिक्षा बांटने का मजबूत इरादा रखते हैं। उनका सरकार से कहना है कि नई शिक्षा नीति में पर्यावरण सब्जेक्ट जरूर होना चाहिए, व पूरे देश में हर सप्ताह कम से कम दो दिन पूर्ण लॉकडाउन जरूर होना चाहिए। लॉक डाउन के दौरान पूरे विश्व में आश्चर्यजनक रूप से पर्यावरण अधिकांश शुद्ध हो गया था। जो अब पुन: लॉकडाउन के बाद अपने पुराने रूप में आ गया है, स्वास्थ्य के लिए जहरीला, हम सबको इसे पूर्ण शुद्ध करने के लिए संकल्प लेकर शपथ लेने चाहिए, केवल नारे, स्लोगन इसके लिए काफी नहीं।